Samudra Manthan से पहले पूर्व काल की बात है देव और असुर संग्राम में दैत्यों ने देवताओं को परास्त कर दिया था. वे दुर्वासा ऋषि के श्राप के कारण देवी लक्ष्मी से रहित हो चुके थे तब संपूर्ण देवता क्षीर सागर में शयन करने वाले भगवान विष्णु के पास जाकर बोले कि हे भगवान आप देवताओं की रक्षा कीजिए.
देवताओं का विष्णु जी के पास जाना
यह सुनकर श्री हरि ने ब्रह्मा आदि देवताओं से कहा कि हे देवगणों तुम सभी देवता अमृत प्राप्त करने और लक्ष्मी को पाने के लिए असुरों से संधि करो. क्योंकि कोई भी बड़ा काम या भारी प्रयोजन आने पर शत्रुओं से भी संधि कर लेनी चाहिए. मैं तुम लोगों को Samudra Manthan से निकलने वाला अमृत पिलाऊंगा और दैत्यों को उससे वंचित रखूंगा.
मंदरांचल पर्वत को मथनी बनाओं और वासुकी नाग की रस्सी बनाओ. मैं कूर्म यानि कछुए का अवतार लेकर मंदरांचल पर्वत को अपनी पीठ पर धारण करूँगा और तुम लोगों की समुन्द्र मंथन(Samudra Manthan) में सहायता करूँगा. इसलिए तुम सभी मेरे कहने से समुन्द्र मंथन करों.
Samudra Manthan (समुद्र मंथन प्रारंभ)
भगवान विष्णु के ऐसा कहने पर देवता सभी दैत्यों के साथ संधि करके क्षीर समुद्र पर पहुंच जाते हैं फिर तो उन्होंने एक साथ मिलकर समुद्र मंथन(Samudra Manthan) करना आरंभ कर दिया. जिस और वासुकि नाग की पूछ थी उस और देवता खड़े थे.
कूर्म अवतार
दानव वासुकि नाग के विष से क्षीण छीन हो रहे थे क्योंकि वह वासुकि नाग के मुख की ओर खड़े थे और देवताओं को भगवान अपनी कृपा दृष्टि से परिपुष्ट भी कर रहे थे. समुद्र मंथन(Samudra Manthan) आरंभ होने पर कोई आधार न मिलने से मंदराचल पर्वत समुद्र में डूबता जा रहा था. तब भगवान विष्णु ने कूर्म अवतार यानि कछुए का रूप धारण किया और मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर रख लिया.
Samudra Manthan से हलाहल विष प्रकट होना
इसके बाद जब समुद्र मथा जाने लगा तो उसके भीतर से हलाहल कालकूट विष प्रकट हुआ उसे भगवान शंकर ने अपने कंठ में धारण किया. इससे शिवजी के कंठ में काला दाग पड़ जाने के कारण भगवान भोलेनाथ को नीलकंठ के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त हुई.
लक्ष्मी जी और अमृत कलश प्रकट होना
इसके पश्चात समुद्र(Samudra Manthan) से वारुणी देवी, पारिजात वृक्ष ,दिव्या अप्सरा भी प्रकट हुई. फिर लक्ष्मी देवी जी का प्रादुर्भाव हुआ और वह भगवान विष्णु जी को प्राप्त हुई. संपूर्ण देवताओं ने उनका दर्शन और स्तवन किया. इसके बाद भगवान विष्णु के अंश भूत धनवंतरी जो आयुर्वेद के प्रवर्तक हैं, हाथ में अमृत से भरा हुआ कलश लेकर प्रकट हुए.
विष्णु जी का मोहिनी अवतार
सभी दैत्यों ने उनके हाथ से अमृत का कलश छीन लिया और उसमें से आधा देवताओं को देकर वे सब चलते बने. उनमें जम्भ आदि दैत्य प्रधान थे. उन्हें जाते देख भगवान विष्णु ने मोहिनी स्त्री का रूप धारण किया और उस रूपवती स्त्री को देखकर दैत्य मोहित हो गए.
दैत्य कहने लगे की हे सुमुखी तुम हमारी भार्या बन जाओं और यह अमृत लेकर हमें पिलाओ. यह कह कर भगवान ने उनके हाथ से अमृत ले लिया और उसे देवताओं को पिला दिया.
राहु का सर काटना
उसी समय राहु चंद्रमा का रूप धारण करके अमृत पीने लगा तब सूर्य और चंद्रमा ने उसके कपट वेश को प्रकट कर दिया. यह देखकर भगवान श्री हरि ने चक्र से उसका मस्तक काट डाला उसका सर अलग हो गया और भुज सहित धड अलग रह गया फिर भगवान को दया आई और उन्होंने राहु को अमर बना दिया.
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तब ग्रह स्वरूप राहु ने भगवान श्री हरि से कहा इन सूर्य और चंद्रमा को मेरे द्वारा अनेकों बार ग्रहण लगेगा उस समय संसार के लोग जो कुछ दान करें वह सब अक्षय होगा. भगवान विष्णु ने तथास्तु कहकर संपूर्ण देवताओं के साथ राहु की बात का अनुमोदन किया.
महादेव का मोहिनी पर मोहित होना
इसके बाद भगवान ने स्त्री रूप त्याग दिया किंतु महादेव जी को भगवान के उसे रूप का पुनर्दर्शन करने की इच्छा हुई, अतः उन्होंने अनुरोध किया भगवान आप अपने स्त्री रूप का मुझे दर्शन दीजिये. महादेव जी की प्रार्थना से भगवान श्री हरि ने उन्हें अपने स्त्री रूप का दर्शन कराया.
वे भगवान की माया से ऐसे मोहित हो गए की पार्वती जी को त्याग कर उस स्त्री के पीछे लग गए. उन्होंने नग्न और उन्मत्त होकर मोहिनी के कैसे पकड़ लिए. मोहिनी अपने केश को छुड़ाकर वहां से चल दी. उसे जाती देख महादेव जी भी उसके पीछे-पीछे दौड़ने लगे.
शिवलिंग और स्वर्ण की खानों का निर्माण
उस समय पृथ्वी पर जहां-जहां भगवान शंकर का वीर्य गिरा वहां शिवलिंगों का क्षेत्र एवं स्वर्ण की खान हो गई. तत्पश्चात यह माया है ऐसा जानकर भगवान शंकर अपने स्वरूप में स्थित हुए तब भगवान श्री हरि ने प्रकट होकर शिवजी से कहा कि है रुद्र तुमने मेरी माया को जीत लिया है.
पृथ्वी पर तुम्हारे सिवा दूसरा कोई ऐसा पुरुष नहीं है जो मेरी इस माया को जीत सके. भगवान के प्रयत्न से दैत्यों को अमृत नहीं मिल पाया, अतः देवताओं ने उन्हें युद्ध में मार गिराया फिर देवता स्वर्ग में दोबारा से विराजमान हुए और दैत्य लोग पाताल में रहने लगे. ऐसा माना जाता हैं कि जो मनुष्य देवताओं की इस विजय गाथा का पाठ करता है वह स्वर्ग लोक में जाता है.
निष्कर्ष
इस लेख के माध्यम से आप को पता चल गया होगा कि समुद्र मंथन कैसे और कितनी कठिनाइयों के साथ शुरू हुआ था और इसमें कितने संघर्ष हुए थे. इसके बाद जब मंदरांचल पर्वत नहीं रोका जा रहा था तो भगवान विष्णु जी को कूर्म अवतार लेना पड़ा था.
इसके बाद Samudra Manthan को दोबारा से शुरू किया गया और फिर भगवान शंकर ने हलाहल कालकूट विष को अपने कंठ में ग्रहण किया था. इसके बाद मोहिनी अवतार लेकर प्रभु ने देवताओं को इसका पान करवाया और दैत्यों को इससे पूर्णत: वंचित रख दिया था.
लेकिन राहु नाम के दैत्य ने चोरी से वेश बदलकर अमृत का पान कर लिया था.तो यह लेख आप को कैसा लगा हैं इसके बारे में आप हमें कमेंट के माध्यम से बता सकते हैं और अगर आप का नया कोई प्रश्न हैं तो भी आप हमसे संपर्क कर सकते हैं. धन्यवाद.